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Prem Geet written by Dharmveer Bharati | Rebel Thoughts | Ek kavita Roj

2020-01-07 2 Dailymotion

Rebel Thoughts presents daily a meaningful poem.
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प्रेम गीत
अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूमे,
अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे,

महज इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो?
महज इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो?
तुम्हारा मन अगर सींचूं,
गुलाबी तन अगर सींचूं,
तरल मलयज झकोरों से
तुम्हारा चित्र खींचूं प्यास के रंगीन डोरों से
कली-सा तन, किरण-सा मन,
शिथिल सतरंगिया आंचल,
उसी में खिल पड़े यदि भूल से कुछ होंठ के पाटल,
किसी के होंठ पर झुक जाएं कच्चे नैन के बादल,
महज इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो?
महज इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो?

किसी की गोद में सिर धर,
घटा घनघोर बिखरा कर,
अगर विश्वास सो जाए
धड़कते वक्ष पर, मेरा अगर अस्तित्व खो जाए
न हो यह वासना, तो
जिंदगी की माप कैसे हो
किसी के रूप का सम्मान, मुझको पाप कैसे हो?
नसों का रेशमी तूफान, मुझको पाप कैसे हो?

अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूमे,
अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे,

किसी की सांस में चुन दूं,
किसी के होंठ पर बुन दूं,
अगर अंगूर की परतें,
प्रणय में निभ नहीं पातीं कभी इस तौर की शर्तें
यहां तो हर कदम पर
स्वर्ग की पगडंडियां घूमीं
अगर मैंने किसी की मद भरी अंगड़ाइयां चूमीं,
अगर मैंने किसी की सांस की पुरवाइयां चूमीं,
महज इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो?
महज इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो?
-धरमवीर भारती

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