वो दोनों ही साथ-साथ 12 वीं तक पढ़े। साथ खेले-कूदे, लेकिन कभी एक दूसरे को अपनी दिल की बात नहीं कह पाए। मूक बधिर प्रीति और उन्हीं के सहपाठी मूक बधिर नेमीचंद को अध्ययनकाल में ही कब एक दूसरे से प्रीत हो गई दोनों को पता ही नहीं चला।